
इस वक्त बेहद गुस्से में व्यांश गेट पर खड़ा था। वह स्कूल ड्रेस में था, हाथों में उसका स्कूल बैग भी था। लेकिन जैसे ही आरुषि जी ने अपने बेटे को देखा, उनकी आंखें भर गईं। वह तुरंत उसके पास गईं और उसके चेहरे को पकड़ते हुए बोलीं, “मेरा बच्चा, मेरा बच्चा वापस आ गया! मैं कब से तुम्हें देखना चाह रही थी। मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि तुम आ गए। तीन महीने में कितने दुबले हो गए हो। मुझे पता है, तुम्हें ठीक से खाने-पीने को नहीं मिलता होगा। लेकिन इसमें हम या तुम कुछ नहीं कर सकते, बेटा। यह सब किस्मत का खेल है, वरना मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे अपने बेटे की ऐसी हालत देखनी पड़ेगी।”
यह सब कहते हुए आरुषि ने व्यांश को सीने से लगा लिया। उनकी आंखों से आंसू गिर रहे थे। तभी अगले ही पल व्यांश ने आरुषि को तुरंत दूर करते हुए कहा, “आप यहां से चली जाइए। आपको यहां आने की कोई जरूरत नहीं थी।”




















Write a comment ...