लेकिन तभी अचानक मल्लिका जोर से चिल्लाई, "नहीं! कभी नहीं! आपने ऐसा सोच भी कैसे लिया कि मैं ऐसे गंदे काम आपके साथ मिलकर करूंगी? आपके पास क्या भगवान ने हाथ-पैर नहीं दिए हैं, जो आप मुझसे चावल लेने में मदद मांग रहे हैं? आपको शर्म आनी चाहिए! आपने ऐसा सोच भी कैसे लिया? मुझे तो अब आपसे नफरत हो रही है! आप बहुत ही घटिया और गंदे इंसान हैं!"
मल्लिका लगातार द्रांश पर बरसती जा रही थी, लेकिन तभी द्रांश गुस्से में उसकी गर्दन पकड़कर गुर्राया, "बस! बहुत हो गया! अब अगर तुमने एक शब्द भी कहा, तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। तुम्हें क्या लगता है, तुम जो चाहो वो बकती रहोगी और मैं बस सुनता रहूंगा? कान खोलकर सुन लो, अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी, तो आगे क्या होगा, ये तुम अच्छे से जानती हो। मुझे बताने की जरूरत नहीं है!"

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