
Udaipur, Rajasthan –
Night Time
Grand Palace,
palace जितना ग्रैंड था, उसका सर्वेंट्स एरिया भी उतना ही खूबसूरत था। वहां रहने वाले सेवकों के लिए शानदार कमरे बने थे, जो किसी आम घर से कहीं बेहतर थे। उन्हीं कमरों में से एक, सबसे आखिरी कमरे में, इस वक्त एक औरत, जिसकी उम्र लगभग 40-45 साल रही होगी, फोन पर किसी से बात कर रही थी। उसके चेहरे पर हल्की सी smile थी। प्यार भरे लहज़े में उसने कहा—
"बेटा, मैं तुम्हारा कब से इंतजार कर रही हूं। अब जब तुमने अपना ग्रेजुएशन कंप्लीट कर लिया है, तो मुझे लगता है कि तुम्हें यहां एक बार आ जाना चाहिए। हमारे मालिक की बहुत बड़ी-बड़ी कंपनियां हैं, जो पूरी दुनिया में फेमस हैं। तुम उनमें से किसी एक कंपनी में काम कर सकती हो। वैसे भी अब तुम्हारी उम्र 22 साल की हो गई है, तो तुम्हें आराम से नौकरी मिल जाएगी।"
फोन के दूसरी तरफ से एक लड़की की शांत आवाज़ आई—
"मां, आप फिक्र मत कीजिए। जैसे ही मुझे ग्रेजुएशन की डिग्री मिलती है, मैं वैसे ही वहां आ जाऊंगी।"
ये सुनकर औरत की smile और गहरी हो गई। वो प्यार से बोली—
"मैं बस तुम्हारा इंतजार कर रही हूं। मुझे बहुत खुशी है कि मेरी बेटी ने पूरी यूनिवर्सिटी में टॉप किया है। कल तो मैं सबको मिठाई भी बांटूंगी!"
लड़की हल्का मुस्कुराई और बोली—
"मां, आपको इतनी जल्दी खुश होने की जरूरत नहीं है। जिस दिन मैं अपने दम पर कुछ बन जाऊंगी और अपनी पहली सैलरी आपके हाथों में दूंगी, उस दिन आप खुश होना।"
औरत की आंखों में हल्की नमी आ गई, लेकिन उसकी आवाज़ में गर्व झलक रहा था—
"बेटा, तुमने हमेशा से मेरा सिर ऊंचा किया है। बेशक मैं इस बड़े palace में एक नौकरानी का काम करती हूं, लेकिन तुम अपनी एक अलग पहचान बना रही हो, यही मेरे लिए सबसे बड़ी बात है। जो मैं नहीं कर पाई, वो तुम कर रही हो, इसलिए मैं बहुत खुश हूं।"
इसके बाद उसने कुछ देर और अपनी बेटी से बातें कीं, फिर कॉल काट दिया।
वो बेड पर आई और मुस्कुराते हुए खुद से बोली—
"बस दो दिन और... उसके बाद मेरी बेटी यहां आ जाएगी। मैं उसे पूरे पांच साल बाद देखूंगी।"
पांच साल पहले, जब वो इस palace में काम करने आई थी, तब उसने अपनी बेटी को पढ़ाई के लिए मुंबई भेज दिया था। पर अब वो वापस आ रही थी। ये सोचकर उसके चेहरे पर एक प्यारी smile आ गई, और वो सुकून से सो गई।
अगली सुबह,
अगली सुबह,
वो औरत अपने हाथ में मिठाई का box लिए palace के सर्वेंट्स को मिठाई खिला रही थी। सभी सर्वेंट्स उसे बधाई दे रहे थे, और वो खुशी-खुशी सबसे मुस्कुराकर बातें कर रही थी।
इसके बाद, मिठाई का box लेकर वो palace के अंदर की ओर बढ़ी। जैसे ही वो पैलेस के लग्जरियस हॉल में पहुंची, उसकी नजर सोफे पर बैठे एक बुजुर्ग आदमी पर पड़ी। वो बेहद रौबदार और सीरियस लग रहा था, फाइल में कुछ देख रहा था। उसके बगल में एक और शख्स बैठा था—शायद उसका बेटा। उसके चेहरे पर भी वही सीरियस और रौबदार एक्सप्रेशंस थे।
उन्हें देखकर वो औरत मुस्कुराई और धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ी। उनके सामने पहुंचकर उसने आदर से सिर झुकाया और बोली—
"बड़े मालिक, मैं आप सबके लिए मिठाई लेकर आई हूं।"
उसकी आवाज़ सुनकर बुजुर्ग आदमी और उसका बेटा दोनों उसकी तरफ देखने लगे।
बुजुर्ग आदमी ने थोड़ी हैरानी से पूछा,
"मिठाई? किस खुशी में, सुनीता? कोई खास बात?"
सुनीता ने smile लाते हुए जवाब दिया—
"जी हां, बड़े मालिक! दरअसल, मेरी बेटी—जिसके बारे में मैंने पहले भी बताया था—उसने पूरी यूनिवर्सिटी में टॉप किया है। और अब, दो दिनों में वो यहां आ रही है!"
ये सुनकर सभी मुस्कुरा दिए, और उस आदमी ने खुशी से कहा—
"ये तो बहुत ही अच्छी बात है! कम से कम तुम्हारी बेटी इतना नाम रोशन कर रही है। हम तो जरूर मिठाई खाएंगे!"
ये कहते हुए उसने मिठाई का टुकड़ा उठाया और खा लिया। वहीं, बूढ़े आदमी ने भी मुस्कुराते हुए कहा—
"तुम्हें बहुत-बहुत बधाई हो, सुनीता! तुम यहां इतनी मेहनत से काम करती हो, अपनी बेटी के लिए शहर में पैसे भेजती हो, और तुम्हारी बेटी भी उन पैसों का सही इस्तेमाल करके अपना नाम रोशन कर रही है। काश, हर कोई ऐसा करता..."
ये कहते-कहते बूढ़े आदमी के चेहरे के एक्सप्रेशंस अचानक बदल गए। सुनीता ने ये महसूस किया और थोड़ी हिचकिचा गई। तभी मंदिर की तरफ से आती आवाज़ ने माहौल को तोड़ा—
"सुबह-सुबह आप फिर से शुरू हो गए! देखिए, वो अपनी जगह बिल्कुल सही है। अभी उसकी उम्र ही क्या है? सिर्फ 17 साल! और इस उम्र में भी वो इतनी मेहनत करता है। अब इसमें उसकी क्या गलती कि वो जल्दी टॉप नहीं कर पाता?"
तभी उस आदमी ने मुंह बनाते हुए जवाब दिया—
"आप उसकी ज़्यादा साइड मत लीजिए! जब वो सारा दिन वीडियो गेम्स और कार रेसिंग में लगा रहेगा, तो पढ़ाई कब करेगा? कुछ कह दो, तो जवाब देना भी ज़रूरी नहीं समझता! ऐसा लगता है जैसे हम उसके नौकर हैं और वो हमारा मालिक!"
ये सुनकर वो औरत घमंड भरे आवाज में बोली—
"जाहिर सी बात है! वो पूरे खानदान का मालिक है। इकलौता वारिस है हमारे महेश्वरी खानदान का चिराग! इतना तो घमंड उसके अंदर होना ही चाहिए!"
ये सुनकर सुनीता, बूढ़ा आदमी और वो आदमी, तीनों ही उस औरत को बस देखते रह गए।
तभी उस औरत ने सुनीता को घूरते हुए कहा—
"तुम्हारी बेटी कब आने वाली है, सुनीता?"
सुनीता ने तुरंत जवाब दिया—
"वो बस दो दिनों में आ जाएगी, मैडम!"
ये सुनकर वो औरत कुछ सोच में पड़ गई, फिर बोली—
"अगर तुम्हारी बेटी ने टॉप किया है, तो उसे हर तरह की पढ़ाई आती होगी, राइट?"
सुनीता ने तुरंत सिर हिलाते हुए कहा—
"हाँ, बिल्कुल! उसे सबकुछ आता है। यहां तक कि वो बच्चों को कोचिंग भी पढ़ाती है!"
ये सुनकर वो औरत बूढ़े आदमी और अपने पति, हरीश की तरफ देखते हुए बोली—
"हरीश, मैं सोच रही थी कि अगर सुनीता की बेटी यहां आ ही रही है और उसे पढ़ाने का अच्छा अनुभव भी है, तो क्यों न हम उसे अपने बेटे की पढ़ाई के लिए रख लें? क्या पता, उसके पढ़ाने से हमारे बेटे के मार्क्स अच्छे आ जाएं! आपको तो पता ही है कि वो किसी और से कोचिंग लेने को तैयार नहीं होता, बल्कि कोचिंग करना ही नहीं चाहता। हम उसे समझा-समझाकर थक गए हैं! शायद घर में पढ़ाने वाला कोई मिल जाए, तो वो मन लगाकर पढ़ने लगे।"
सुनीता भी खुशी से बोली—
"ये तो मेरे लिए बहुत किस्मत की बात होगी कि मेरी बेटी इस घर के चिराग, इस घर के इकलौते वारिस को पढ़ाएगी! आप बिलकुल चिंता मत कीजिए, मैं उसे समझा दूंगी कि वो छोटे बाबा की पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे..."
इसके आगे वो कुछ कहने ही वाली थी कि...
उससे पहले ही हरीश ने नाखुशी से कहा—
"आरुषि, तुम ये कैसी बातें कर रही हो? मुझे नहीं लगता कि तुम्हारी ये सुनीता की बेटी, तुम्हारे उस बिगड़े हुए बेटे को पढ़ा पाएगी। तुम्हें पता है ना, वो किसी की ज्यादा सुनता ही नहीं! जब देखो तब अपने में ही बिजी रहता है, और उसकी आंखों में तो ऐसा गुस्सा होता है, जैसे ज़िंदा ही निगल जाएगा! मुझे नहीं लगता कि ये कोई अच्छा आइडिया है।"
ये सुनकर आरुषि ने मुंह बना लिया, लेकिन तभी बूढ़े आदमी ने कहा—
"हरीश, मुझे लगता है कि आरुषि बिल्कुल ठीक कह रही है। हमारा व्यांश किसी बाहरी इंसान के साथ इंटरैक्ट नहीं करता, लेकिन अगर घर में ही कोई उसे पढ़ाने लगे, तो हो सकता है वो धीरे-धीरे पढ़ाई में रुचि लेने लगे। और क्या पता, उसके मार्क्स भी सुधर जाएं?"
हरीश ने गहरी सांस लेते हुए कहा—
"ठीक है डैड, अगर आप सबको लगता है कि सुनीता की बेटी के पढ़ाने से व्यांश थोड़ा सुधर सकता है, तो जैसा आपको ठीक लगे।"
ये सुनकर आरुषि ने मुस्कुराते हुए सुनीता की तरफ देखा और पूछा—
"तो सुनीता, तुम्हारी बेटी कब आ रही है?"
सुनीता ने खुशी से जवाब दिया—
"बस दो दिनों में! एक बार उसे उसकी डिग्री मिल जाए, फिर वो यहीं आ जाएगी।"
आरुषि ने सिर हिलाते हुए कहा—
"ठीक है, जब वो यहां आ जाए, तो उसे palace में भेज देना। हम उससे बात करेंगे।"
ये कहकर वो वापस किचन की तरफ बढ़ गई और जाते-जाते बोली—
"जाओ, जाकर देखो, व्यांश उठा या नहीं! उसे स्कूल भी जाना है।"
ये सुनकर सुनीता ने तुरंत सिर हिलाया और सीढ़ियां चढ़ते हुए टॉप फ्लोर की तरफ बढ़ गई।
वो टॉप फ्लोर की तरफ आई, जहाँ पूरे फ्लोर पर केवल एक ही कमरा था।
कमरे के दरवाजे को देखते हुए सुनीता ने गहरी सांस ली और बुदबुदाई—
"व्यांश बेटा, मैं उम्मीद करती हूँ कि मेरी बेटी तुम्हें अच्छे से पढ़ा पाएगी। जिससे तुम्हारी फैमिली उसे अपनी कंपनी में अच्छी नौकरी दे दे और मेरी बेटी की किस्मत बदल जाए..."
ये कहते हुए उसने दरवाजा खोला और अंदर दाखिल हुई।
"व्यांश बेटा, तुम्हें स्कूल जाना है ना? क्या तुम अभी तक सो रहे हो?"
कहते हुए उसने बेड की तरफ देखा।
कमरा बहुत ही ज्यादा लग्जरियस था, जिसमें क्लासिकल चीजों की भरमार थी। दीवार पर कई ट्रॉफी और मेडल सजे हुए थे, जो शायद उसकी खेल-कूद और दूसरे एक्टिविटीज़ के थे। कमरे के बीचों-बीच एक ब्लैक कलर का राउंड शेप बेड था, जिस पर कोई इस वक्त सो रहा था। आधा ब्लैंकेट नीचे जमीन पर गिरा हुआ था और एक हाथ बाहर निकला हुआ था, जिस पर धूप की हल्की रोशनी पड़ रही थी। मगर उसमें कोई मूवमेंट नहीं थी।
सुनीता धीरे-धीरे आगे बढ़ी, ब्लैंकेट को ठीक से बेड पर रखा और कोमल आवाज में बोली—
"छोटे बाबा, बड़ी मालकिन ने आपको जगाने के लिए भेजा है। प्लीज उठिए, आपको स्कूल जाना है ना? वरना आप लेट हो जाएंगे।"
ये कहते हुए जैसे ही उसने ब्लैंकेट हटाने की कोशिश की, अचानक किसी ने उसे कसकर पकड़ लिया और नींद भरी आवाज़ में बोला—
"प्लीज, अभी मुझे सोने दीजिए ना आंटी... मुझे आज स्कूल नहीं जाना..."
सुनीता ने ये सुनकर हंसते हुए कहा—
"व्यांश बेटा, आप पूरे 17 साल के हो गए हैं, और सिर्फ दो महीने बाद आपका बर्थडे भी आने वाला है..."
"जिसका मतलब ये हुआ कि दो महीने बाद आप 18 साल के हो जाएंगे, लेकिन फिर भी 5 साल के बच्चों की तरह बर्ताव करते हैं, जो सोने के लिए जिद करता है!"
सुनीता ने हल्की smile के साथ कहा, फिर सीरियस होकर बोली—
"देखिए, मुझे लगता है कि आपको अब जाग जाना चाहिए, वरना अगर आपके डैडी आ गए, तो वो बहुत नाराज़ होंगे।"
ब्लैंकेट के अंदर से ही व्यांश ने बोरियत भरी आवाज़ में कहा—
"मुझे किसी से कोई लेना-देना नहीं है... मुझे बस अभी सोना है... THAT'S IT!"
ये सुनकर सुनीता को समझ नहीं आया कि अब वो क्या करे। मगर फिर उसने गहरी सांस लेते हुए कहा—
"अगर आप नहीं उठे, तो मुझे लगता है कि मुझे जाकर सबको बता देना चाहिए कि कल रात आपने फिर से कार रेसिंग की थी।"
जैसे ही सुनीता ने ये कहा, अचानक व्यांश के एक्सप्रेशंस बदल गए।
उसने झटके से ब्लैंकेट दूर फेंक दिया।
अब उसका चेहरा दिखाई देने लगा—
एक बेहद हैंडसम और अट्रैक्टिव टीनएज boy, जिसकी गहरी भूरी आंखें धूप में ब्राइटली शाइन कर रही थीं। उसके लिप्स आपस में भींचे हुए थे, भौहें चढ़ी हुई, आंखों में अभी भी थोड़ी नींद बाकि थी।
उसके कुछ बाल हल्के-से माथे पर बिखरे हुए थे, जिससे वो किसी ग्रीक गॉड की तरह लग रहा था।
हालाँकि उम्र सिर्फ 17 साल थी, मगर वो पहले ही बेहद चार्मिंग और हैंडसम दिखता था।
मगर इस वक्त, उसके चेहरे पर कोई एक्सप्रेशन नहीं था।
वो गुस्से से सुनीता की तरफ देखते हुए बोला—
"आंटी, इस पूरे पैलेस में सिर्फ एक आप ही हैं जिन पर मैं यकीन करता हूँ। अगर आप भी मेरे साथ ऐसा करेंगी, तो I PROMISE... मैं आपसे अपनी कोई भी बातें शेयर नहीं करूंगा!"
ये सुनकर सुनीता हंसने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,
"अरे बेटा, मैं तो बस तुम्हें जगाने की कोशिश कर रही थी। बाकी तुम्हें फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है, मैं तुम्हें ऐसे नहीं फंसने दूंगी। तुम बिल्कुल भी मत घबराओ, हमारी बातें कभी किसी तीसरे को नहीं पता चलेंगी।"
फिर उसने थोड़ा सीरियस होते हुए कहा—
"लेकिन अभी के लिए आपको स्कूल जाना है, इसलिए प्लीज जल्दी से उठ जाइए और रेडी हो जाइए। वैसे, आप ब्रेकफास्ट कमरे में करेंगे या फिर नीचे डायनिंग एरिया में?"
इसके जवाब में व्यांश गुस्से से बेड से उतरा और वॉशरूम की तरफ बढ़ते हुए बोला—
"मैंने कब सबके साथ ब्रेकफास्ट किया है, जो आप डेली यही सवाल पूछती हैं? आपको पता है ना कि मैं सिर्फ अपने कमरे में ही ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर करता हूं?"
ये सुनकर सुनीता ने उसके जाते हुए पीछे से कहा—
"पर बेटा, अगर आप सबके साथ ब्रेकफास्ट करोगे, तो उन्हें अच्छा लगेगा।"
व्यांश बिना किसी भाव के ठंडे लहजे में बोला,
"मुझे सिर्फ खुद से मतलब है, दूसरों को क्या लगता है, इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। इसलिए आप जाकर मेरा ब्रेकफास्ट यहीं पर भिजवा दीजिए, मैं स्कूल के लिए रेडी होने जा रहा हूं।"
ये कहकर वो वॉशरूम में चला गया।
वहीं, सुनीता ने गहरी सांस लेते हुए अपना सिर हिलाया, जैसे कि उसे इन सबकी आदत हो। फिर वो वहां से बाहर निकल गई।

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